भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को बचाने की कोशिश में जुटा भारत, १६ जुलाई को फांसी घोषित |

भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की कहानी एक दुखद मामला है जो यमन में उनकी मौत की सज़ा से जुड़ा है।
by: सुदाम पेंढारे


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आंतरराष्ट्रीय(यमन) (९ जुलै २०२५) - भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की कहानी एक दुखद मामला है जो यमन में उनकी मौत की सज़ा से जुड़ा है।

निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली एक भारतीय नर्स हैं। वह २००८ में अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहारा देने के लिए यमन गई थीं। उन्होंने वहां कई अस्पतालों में काम किया और बाद में २०१४ में यमन में अपना खुद का क्लिनिक खोला था।

यमन के कानूनों के अनुसार, किसी विदेशी को व्यवसाय शुरू करने के लिए एक स्थानीय भागीदार की आवश्यकता होती है। इसी सिलसिले में निमिषा तलाल अब्दो महदी नामक एक यमनी नागरिक के संपर्क में आईं और उन्होंने मिलकर क्लिनिक शुरू किया। हालांकि, कुछ समय बाद दोनों के बीच अनबन हो गई। बताया जाता है कि महदी ने निमिषा को परेशान करना और धमकाना शुरू कर दिया, और उनका पासपोर्ट भी छीन लिया, जिससे उनके लिए यमन से बाहर निकलना मुश्किल हो गया।

२०१७ में, निमिषा प्रिया ने महदी से अपना पासपोर्ट वापस लेने के इरादे से उन्हें बेहोशी का इंजेक्शन दिया। हालांकि, दवा की अधिक मात्रा के कारण महदी की मौत हो गई। इसके बाद, निमिषा और एक अन्य यमनी महिला, हनान, पर महदी के शरीर को टुकड़ों में काटने और उसे पानी की टंकी में डालने का आरोप लगा।

२०१८ में, निमिषा प्रिया को हत्या का दोषी ठहराया गया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई। नवंबर २०२३ में यमन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने उनकी अपील को खारिज कर दिया और उनकी मौत की सज़ा बरकरार रखी। यमन के राष्ट्रपति ने भी इस सज़ा पर अपनी मुहर लगा दी है।

निमिषा प्रिया को १६ जुलाई २०२५ को यमन में फांसी दी जानी है। वह इस समय यमन की राजधानी सना की जेल में बंद हैं, जो हूती विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाके में है।

निमिषा को बचाने के लिए भारत सरकार, मानवाधिकार संगठन और आम नागरिक लगातार प्रयास कर रहे हैं। "ब्लड मनी" (Diya) का भुगतान करके पीड़ित परिवार की माफी प्राप्त करने का एक रास्ता है, लेकिन इस प्रक्रिया में कई चुनौतियां आ रही हैं, खासकर यमन में मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता और हूती विद्रोहियों के नियंत्रण के कारण। निमिषा की मां प्रेमकुमारी भी अपनी बेटी को बचाने के लिए यमन गई थीं।

यह मामला विदेशों में काम करने वाले भारतीय श्रमिकों की सुरक्षा और उनके सामने आने वाली कानूनी चुनौतियों को उजागर करता है।