आज की सरकार लाचार है; वह FIR दर्ज नहीं कर सकती क्योंकि एक न्यायिक आदेश बाधक है: उपराष्ट्रपति

निश्चित रूप से इतनी नकदी बिना किसी उद्देश्य के नहीं आई होगी, और वह उद्देश्य वैध नहीं हो सकता: उपराष्ट्रपति
by: प्रतिनिधि


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नई दिल्ली (६ जुलै २०२५) - भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा, "आज की सरकार लाचार है। वह FIR दर्ज नहीं कर सकती क्योंकि एक न्यायिक आदेश बाधा है। और वह आदेश तीन दशक से भी अधिक पुराना है। वह लगभग अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर कोई पदाधिकारी अनुमति नहीं देता, FIR दर्ज नहीं की जा सकती। तो मैं स्वयं से एक सवाल पूछता हूँ — पीड़ा में, चिंता में, व्याकुलता में — कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई? यह तो न्यूनतम कदम था, जो सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था।”

उन्होंने आगे कहा, “मैंने यह मुद्दा उठाया है। अंततः, अगर किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव आता है — क्या वही इसका उत्तर है? अगर कोई ऐसा अपराध हुआ है, जो लोकतंत्र और कानून के शासन की नींव को हिला देता है, तो उसे दंड क्यों नहीं मिला? हम तीन महीने से अधिक समय खो चुके हैं और जांच की शुरुआत भी नहीं हुई। जब भी आप अदालत जाते हैं, वे पूछते हैं — FIR में देरी क्यों हुई?”

श्री धनखड़ ने आगे कहा, “क्या न्यायाधीशों की समिति को संवैधानिक या वैधानिक मान्यता प्राप्त है? क्या उसकी रिपोर्ट से कोई ठोस कार्यवाही हो सकती है? अगर संविधान में न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्ताव द्वारा ही निर्धारित है, तो यह समिति उस प्रक्रिया या FIR का विकल्प नहीं हो सकती। अगर हम खुद को लोकतंत्र का दावा करते हैं, तो हमें यह मानना होगा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही केवल कार्यकाल के दौरान अभियोजन से छूट है, किसी और को नहीं। अब अगर ऐसा कोई कृत्य — जो अपराध है — सामने आता है और उसके पीछे नकदी की बात सुप्रीम कोर्ट द्वारा सामने लाई जाती है, तो उस पर कार्यवाही क्यों नहीं?”

उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं पाकर प्रसन्न हूं कि देशभर की बार एसोसिएशन इस मुद्दे को उठा रही हैं। मुझे आशा है कि FIR दर्ज होगी। अनुमति पहले दिन दी जा सकती थी — दी जानी चाहिए थी। रिपोर्ट के बाद तो कम से कम दी ही जानी थी। क्या यह अनुमति न्यायिक पक्ष से दी जा सकती थी? न्यायिक पक्ष में जो हुआ है — वह सबके सामने है।

श्री धनखड़ ने आगे कहा, “मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। हम यह कह सकते हैं कि नकदी की जब्ती हुई, क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक की। हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें अपनी नैतिकता को इस कदर गिराना नहीं चाहिए। हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए।”

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमारी न्याय प्रणाली एक अत्यंत पीड़ादायक घटना से जूझ रही है — जो मार्च मध्य में दिल्ली में एक कार्यरत न्यायाधीश के निवास पर हुई थी। वहाँ नकदी बरामद हुई, जो स्पष्ट रूप से अवैध, बेहिसाब और अपवित्र थी। यह जानकारी 6-7 दिन बाद सार्वजनिक हुई। कल्पना कीजिए, यदि यह बाहर नहीं आती, तो क्या होता? तो हमें यह भी नहीं पता चलता कि यह एकमात्र मामला है या और भी हैं। जब भी इस तरह की बेहिसाब नकदी मिलती है, तो हमें यह जानना चाहिए — यह पैसा किसका है? इसकी मनी ट्रेल क्या है? क्या इस पैसे ने न्यायिक कार्य में प्रभाव डाला? यह सब केवल वकीलों की चिंता नहीं, आम जनता की भी चिंता है।”

श्री धनखड़ ने कहा, “मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि बार एसोसिएशन इस पर काम कर रही हैं। लेकिन जनता का विश्वास सभी संस्थाओं में अत्यंत आवश्यक है। मैं केवल इतना कहता हूं कि यह सोचकर कि यह मामला ठंडा पड़ जाएगा, या मीडिया का ध्यान नहीं रहेगा, यह गलत होगा। जो लोग इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं — उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए। केवल गहन, वैज्ञानिक और निष्पक्ष जांच ही जनता का विश्वास बहाल कर सकती है।”

उन्होंने याद दिलाया, “सरवान सिंह बनाम पंजाब राज्य, 1957 का एक प्रसिद्ध मामला है — जिसमें सच्चाई और अनुमानित सच्चाई के बीच बहुत पतला फर्क था। लेकिन यह फर्क विश्वसनीय साक्ष्यों से ही तय किया जा सकता है। मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा हूं। लेकिन यह तय है — एक ऐसा अपराध हुआ है, जिसने न्यायपालिका और लोकतंत्र की नींव हिला दी है। मुझे आशा है, इसका संज्ञान लिया जाएगा।”

उन्होंने कहा, “मैं राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन का पूर्व अध्यक्ष रहा हूँ। शायद यह पहला मौका है जब हम इस तरह एकत्र हुए हैं। लोकतंत्र में वकीलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। और जब न्याय प्रणाली खतरे में हो — बार के सदस्यों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।”

श्री धनखड़ ने आगे कहा, “पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की बार एसोसिएशन पूरे देश में अद्वितीय है — दो राज्य, एक केंद्र शासित प्रदेश — बहुत ही महत्वपूर्ण बार। मैंने राजस्थान में अध्यक्ष पद निभाया, लेकिन यह सिर्फ जयपुर पीठ तक था। यहाँ पूर्ण क्षेत्राधिकार है। जब भी मैंने इस अदालत में बहस की है, मुझे हमेशा यहाँ आना आनंददायक लगा — क्योंकि यह बार समृद्ध परंपरा वाली है। स्वतंत्रता संग्राम के समय, वकीलों ने अपनी आय और पेशे को छोड़कर राष्ट्र को समर्पित किया।”

लोकतांत्रिक समाज की महत्ता पर बल देते हुए उन्होंने कहा, “अगर कानून के समक्ष समानता और शासन का सिद्धांत कुछ लोगों के लिए समाप्त हो जाए — अगर कुछ लोग कानून से ऊपर, जांच से परे हों — तो यह लोकतंत्र को गंभीर रूप से कमजोर करता है।”

उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि भारतीय नागरिकों की सबसे बड़ी शक्ति है — तब तक निर्दोष माने जाना, जब तक दोष सिद्ध न हो। इसलिए मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा। लेकिन जांच अवश्य होनी चाहिए। क्योंकि जब परदा उठेगा, हमें नहीं पता कितने लोग सामने आएंगे।”

उन्होंने यह भी जोड़ा, “यदि यह पैसे न्यायिक कार्य से जुड़े हुए हैं, अगर निर्णय पैसे से प्रभावित होते हैं — तो वह दिन कम से कम मैं नहीं देखना चाहता, और कोई सांसद देखना नहीं चाहेगा — जब तक कि वह स्वयं उसमें शामिल न हो।”

अंत में उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं विश्वभर में गया हूँ। बुद्धिमत्ता और परिश्रम में हमारे न्यायाधीश सर्वश्रेष्ठ हैं। जब जनता का अन्य संस्थाओं से विश्वास उठ जाता है — कार्यपालिका से भी — तब भी वे न्यायपालिका पर भरोसा करते हैं। क्योंकि वे मानते हैं कि न्यायाधीश ईश्वर के अवतार हैं, जो न्याय करेंगे। और वहाँ भी — एक कार्यरत न्यायाधीश की सार्वजनिक धारणा, एक शपथबद्ध न्यायाधीश से अधिक प्रभावशाली मानी जाती है।”